रावलपिण्डी पाकिस्तान में जन्मे भीष्म साहनी आधुनिक हिन्दी साहित्य के प्रमुख स्तम्भों में से एक थे। भारत-पाकिस्तान विभाजन से पूर्व अवैतनिक शिक्षक होने के साथ-साथ ये व्यापार भी करते थे। विभाजन के बाद उन्होंने भारत आकर समाचार-पत्रों में लिखने का कार्य किया। भीष्म साहनी को हिन्दी साहित्य में प्रेमचन्द की परम्परा का अंग्रेजी लेखक माना जाता है।
भीष्म साहनी का जीवन परिचय
लेखक का नाम :- भीष्म साहनी (Bhisham Sahni)
जन्म :- 8 अगस्त 1915 रावलपिंडी (वर्तमान पाकिस्तान)
मृत्यु :- 11 जुलाई, 2003
पिता व माता का नाम :- श्री हरवंशलाल, श्रीमती लक्ष्मी देवी
भाषा :- हिंदी, अंग्रेजी, रशियन
- उपन्यास -
- तमस
- झरोखे
- मय्यादास की माड़ी
- कुंतो
- नीलू नीलिमा नीलोफ़र
- कड़ियाँ
- नाटक -
- हानूश – वर्ष 1977
- माधवी – वर्ष 1984
- कबीरा खड़ा बाजार में – वर्ष 1985
- मुआवजे – वर्ष 1993
- कहानी-संग्रह - भाग्यरेखा, पहला पाठ, भटकती राख, शोभा यात्रा, निशाचर, पाली आदि।
- बाल-साहित्य - गुलेल का खेल, वापसी।
- आत्मकथा - आज के अतीत
- यात्रा वृतांत - मेरी साहित्य यात्रा
- निबंध - अपनी बात
- आलोचना - भीष्म साहनी सादगी का सौन्दर्यशास्त्र
पुरस्कार एवं सम्मान :- पद्म भूषण, साहित्य अकादमी पुरस्कार, शिरोमणि लेखक अवार्ड, शलाका सम्मान, सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार आदि।
अमृतसर आ गया है कहानी के विषय
- भारत-पाकिस्तान विभाजन के दौरान शरणार्थियों की यात्रा
- विभाजन के बाद भड़की साम्प्रदायिकता का चित्रण
- यात्रा के दौरान होने वाले तनाव और विवाद
- पठान यात्रियों के द्वारा हिन्दू यात्रियों के साथ दुर्व्यवहार आदि।
अमृतसर आ गया है कहानी में उल्लिखित स्थान
- पेशावर
- बंबई
- वज़ीराबाद
- दिल्ली
- अमृतसर
- हरवंसपुरा
अमृतसर आ गया है कहानी के प्रमुख पात्र
कथानायक - कहानी का मुख्य पात्र है जो सभी घटनाओं का साक्षी है।
सरदार - हिन्दुओं का प्रतिनिधित्व करने वाला पात्र है जो बर्मा की लड़ाई में भाग ले चुका है। वह गोरे फौजियों की खिल्ली उड़ाता है।
तीन पठान - मुस्लिम समुदाय का प्रतिनिधित्व करने वाले पात्र हैं जो अत्यन्त उग्र स्वभाव के हैं।
एक बुढ़िया - जो माला जपती है।
'अमृतसर आ गया है' कहानी की समीक्षा
'अमृतसर आ गया है' भीष्म साहनी द्वारा लिखित कहानी है। यह भारत के विभाजन के परिदृश्य पर लिखी गई है। कहानी में शरणार्थियों के एक समूह का पाकिस्तान से भारत के सीमावर्ती शहर 'अमृतसर' की ओर यात्रा के दौरान की भयावहता और विनाश का वर्णन है। कहानी में साम्प्रदायिक डर, तनाव, दहशत निरन्तर विद्यमान रहते हैं। कहानी की घटनाओं में कहीं भी स्पष्ट रूप से दंगे नहीं होते, लेकिन दंगों के दौरान विकसित मानसिकता और तनाव पूरी कहानी में गहराई से रहता है। कहानी साम्प्रदायिक सोच और तनाव को पूरी गहराई और मार्मिकता से सामने लाती है। जब विभाजन के बाद के दंगे समाप्त हो गए, तो एक बात उभरकर सामने आई कि इन दंगों में गरीब शोषित वर्ग को ही भारी नुकसान उठाना पड़ा। समृद्ध वर्ग पर इसका कोई विशेष प्रभाव नहीं पड़ा।
कहानी विभाजन के बाद के सन्दर्भ को रेखांकित करती है। जब पंजाब में साम्प्रदायिक दंगे हो रहे थे लोग अपना घर बार छोड़कर किसी सुरक्षित स्थान पर पहुँच जाना चाहते थे। गाड़ी में सफर करने वाले देखते हैं कि शहर में आग लगी है और लोग भाग रहे हैं।
भीष्म साहनी इन आतंकग्रस्त स्थितियों का वर्णन करते हुए लिखते हैं, मुझे लगा जैसे अपने-अपने स्थान पर बैठे सभी यात्री ने अपने आस-पास बैठे लोगों का जायजा ले लिया है। सरदार जी उठकर मेरी सीट पर आ बैठे। नीचे वाली सीट पर बैठा पठान अपने दो साथी पठानों के साथ ऊपर वाली बर्थ पर चढ़ गया। यही क्रिया शायद रेलगाड़ी के अन्य डिब्बों में चल रही थी। गाड़ी के वजीराबाद पहुँचते ही पठान आश्वस्त हो जाते हैं और हिन्दू-सिख आतंकित।
इसी स्टेशन पर पठान हिन्दू परिवार को धक्के देकर गाड़ी से नीचे उतार देते हैं, लेकिन अमृतसर आते ही हिन्दू आश्वस्त हो जाते हैं और पठान आतंकित हो उस डिब्बे को छोड़कर कहीं और चले जाते हैं।
कहानी में साम्प्रदायिक सोच का एक धरातल तब देखने को मिलता है, जब गाड़ी वजीराबाद रेलवे स्टेशन से निकलती है और पठानों की अन्तः चेतना में हिन्दू-मुस्लिम दंगों के दौरान विकसित तनाव मौजूद है, इसलिए वे एक और दुबले-पतले बाबू का उपहास करते हैं। कहानी में वजीराबाद प्रतीक है मुस्लिम बहुल इलाके और साम्प्रदायिक सोच का तथा अमृतसर प्रतीक है हिन्दू बहुल इलाके और साम्प्रदायिक सोच का। ये दोनों धरातल अपने उग्रतम और क्रूरतम रूप से साम्प्रदायिक सोच को उभारते हैं, जो कहानी की सबसे बड़ी शक्ति है। पूरी कहानी में साम्प्रदायिक तनाव मौजूद रहता है कभी पठानों की सोच और हिंसा के रूप में तो कभी बाबू की सोच और उसकी हिंसा के रूप में। दरअसल अमृतसर आते ही दुबले-पतले बाबू में अचानक ऊर्जा और शक्ति का आ जाना हमारी सामूहिक सोच और सामाजिक स्थितियों का द्योतक है।
साम्प्रदायिकता का जहर सामूहिक शक्ति बनकर हमारी चेतना का नाश करता है और मनुष्य को विवेकहीन बनाता है। साम्प्रदायिक मानसिकता का जितना गहरा और सूक्ष्म चित्रण भीष्म साहनी जी की कहानियों में देखने को मिलता है, उतना शायद किसी अन्य कथाकार की कहानियों में नहीं।
जितनी सहज और सरल भीष्म साहनी जी की कहानी है उतना सहज और सरल कहानी का शिल्प भी है। इस कहानी की भाषा सहज और सरल तथा पात्रों की मानसिकता और परिवेश के अनुकूल है। भीष्म जी ने पंजाब के परिवेश से इस कहानी की संवेदना का चुनाव किया है। कहानी के प्रमुख पात्र तीन पठान हैं। पठानों की भाषा को भीष्म जी ने बहुत ही सहजता और आत्मीयता से उनके संवादों में समाविष्ट किया है। संवादों के माध्यम से भीष्म जी ने पठानों की सहजता, सरलता, जीवन्तता और विनोदप्रियता की ओर संकेत किया है।
कहानी में जब डर और भय से सम्बन्धित सन्दर्भों और प्रसंगों का संकेत करना होता है, तो भीष्म साहनी तद्नुसार शब्दों का चुनाव करते हैं और छोटे व सारगर्भित शब्दों के माध्यम से डर और भय की मानसिकता को उजागर करते हैं। कहानी की कथा सीमित होते हुए भी कहानी का परिवेश अत्यन्त व्यापक और विस्तृत है।
अन्ततः कहा जा सकता है कि यह कहानी हमारे समय के सबसे ज्वलन्त प्रश्न को उठाती है। जहाँ तक साम्प्रदायिकता का प्रश्न है यह कहानी अत्यधिक महत्त्वपूर्ण, विशिष्ट और प्रासंगिक है, क्योंकि आज भी हमारे समाज में साम्प्रदायिक शक्तियाँ बहुत तेजी से सक्रिय हो गई हैं। आज फिर साम्प्रदायिक सोच हमारे सामने एक विकराल रूप में है। असहिष्णुता, असंवेदनशीलता तथा संकीर्णता हमारे समाज में फिर से व्याप्त हो रही हैं।
अमृतसर आ गया है कहानी के महत्वपूर्ण तथ्य
- अमृतसर आ गया' कहानी भीष्म साहनी जी के कहानी संग्रह 'पटरियाँ' में संग्रहित है। इस कहानी संग्रह का प्रकाशन 1973 में हुई थी। इस कहानी संग्रह में कुल चौदह कहानियाँ है।
- 'अमृतसर आ गया है..' कहानी भीष्म साहनी जी द्वारा 'विभाजन की त्रासदी' का एक अक्स मात्र है, 1973 में ही प्रकाशित 'तमस' उपन्यास इस त्रासदी का पूरा वाक़या है।
- यह कहानी देश विभाजन की त्रासदी पर आधारित है। लेखक ने 'ट्रेन' के दृश्य को उभारते हुए साप्रदायिक तनाव और अमानवीयता को कहानी का मुख्य विषय बनाया है।
- 'कृष्णा सोबती' की कहानी 'सिक्का बदल गया' जहाँ पाकिस्तान के अंदर की घटना बयाँ करती है, वही 'अमृतसर आ गया है... विभाजन की परिवर्ती स्थितियों का दृश्य समाहित कर तत्कालीन ट्रेन सफर की वस्तु-स्थिति पर आधारित 'भीष्म साहनी' जी कहानी है।
- 'अमृतसर आ गया है'.. मैं शैली में लिखित कहानी है। संप्रदायिक तनाव के विस्तृत फलक पर कलात्मक संयम के साथ प्रस्तुत करने का सफल प्रयास भीष्म साहनी जी ने इस कहानी में किया है।
- कहानी 'मैं' शैली में लिखित है तथा इसमें सांप्रदायिक तनाव की विषयवस्तु जिसमें भाईचारे एवं मानवीय रिश्तों में एक टूटन दिखाई पड़ती है।
- यह कहानी मनोविश्लेष्णात्मक शैली में लिखी गई है। शुरू में खुशनुमा माहौल, बाद में वातावरण भयाक्रांत हो गया। शायद सबको दंगों की आहट थी।
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Chief Ki Dawat Kahani MCQ
प्रश्न 01. 'अमृतसर आ गया है' कहानी के सन्दर्भ में उचित कथन पर विचार कीजिए:
(B) 'अमृतसर आ गया है ' कहानी सर्वप्रथम हंस पत्रिका में प्रकाशित हुई थी।
C) इस कहानी में 1947 के भारत पाक बंटवारे के बाद की सामाजिक स्थितियों की झलक है।
(D) 'एक पतला बाबू' इस कहानी का पात्र है।
कूट:-
- A और B सही है
- B और D सही है
- C और D सही है
- A और C सही है
उत्तर: 4. A और C सही है
प्रश्न 02. जो विभाजन पहले डिब्बे के स्तर पर हो रहा था अब वह गाड़ी के स्तर पर होने लगा था। उपरोक्त पंक्ति किस कहानी से संबंधित है :-
- दुलाईवाली
- अमृतसर आ गया है।
- गैंग्रीन
- सिक्का बदल गया
उत्तर: 2. अमृतसर आ गया है।
प्रश्न 03. दुबला बाबू किस शहर का रहने वाला था।
- दिल्ली
- पंजाब
- हबंसपुरा
- पेशावर
उत्तर: 4. पेशावर
प्रश्न 04. अमृतसर आ गया है कहानी लेखक को लाम का किस्सा किसने सुनाया?
- दुबला बाबू
- सरदार जी
- बुढ़िया
- पठान
उत्तर: 2. सरदार जी
प्रश्न 05. अमृतसर आ गया है कहानी किस संग्रह में प्रकाशित है।
- इंद्रजाल
- वाडचू
- पटरियां
- अमृतसर आ गया है
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